
हिंदू धर्म अपने भीतर कई उपासना पद्धतियों और दर्शन का समावेश करता है। इसमें प्रमुख रूप से दो परंपराएँ हैं — शैव और वैष्णव। ये दोनों धाराएँ भगवान के विभिन्न रूपों की आराधना करती हैं, लेकिन इनकी मान्यताएँ, प्रतीक और अनुष्ठान में कई दिलचस्प अंतर हैं।
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शैव कौन होते हैं?
शैव वे अनुयायी होते हैं जो भगवान शिव को सर्वोच्च ईश्वर मानते हैं। शिव को संहारक, तपस्वी, और ध्यान का देवता माना जाता है।
प्रमुख लक्षण- शिवलिंग की पूजा। “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप। भस्म, रुद्राक्ष, त्रिशूल और डमरू से जुड़े प्रतीक। काशी, केदारनाथ, अमरनाथ जैसे पवित्र स्थल। शिव केवल देव नहीं, एक जीवन-दर्शन हैं – वैराग्य, शक्ति और तपस्या के प्रतीक।
वैष्णव कौन होते हैं?
वैष्णव वे हैं जो भगवान विष्णु को परमात्मा मानते हैं। विष्णु को पालनकर्ता और विश्व के रक्षक का रूप माना जाता है।
प्रमुख लक्षण- विष्णु के दस अवतारों (राम, कृष्ण, नरसिंह आदि) की भक्ति। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “हरे कृष्ण” मंत्र। तिलक, तुलसी माला और शंख-चक्र का प्रयोग। बद्रीनाथ, पुरी, द्वारका जैसे धाम।विष्णु वो हैं जो सृष्टि को थामे रखते हैं, जिनकी भक्ति में प्रेम, सेवा और समर्पण का भाव है।
शैव और वैष्णव में क्या अंतर है?
बिंदु | शैव परंपरा | वैष्णव परंपरा |
---|---|---|
मुख्य आराध्य | शिव | विष्णु |
पूजा प्रतीक | शिवलिंग | विष्णु मूर्ति/अवतार |
मंत्र | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |
तिलक | तीन क्षैतिज रेखाएं | ऊर्ध्व (U आकार) तिलक |
प्रमुख ग्रंथ | शिवपुराण, तंत्र | भगवद्गीता, भागवत |
ये एक-दूसरे के विरोधी हैं?
नहीं, शैव और वैष्णव विरोध नहीं, विविधता का प्रतीक हैं। कई हिंदू ग्रंथों में दोनों को एक-दूसरे का पूरक बताया गया है। उदाहरण के लिए, हरिहर रूप में शिव और विष्णु की एकता दर्शाई गई है।
आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता
आज भी शैव और वैष्णव परंपराएं भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को दिशा देती हैं। चाहे कांवड़ यात्रा हो या रामनवमी—हर परंपरा की अपनी एक अनूठी गरिमा है।
शैव और वैष्णव, दो अलग धाराएँ ज़रूर हैं, लेकिन दोनों का उद्देश्य एक ही है — ईश्वर की आराधना और आत्मा की मुक्ति। इनमें मतभेद नहीं, मत-विविधता है, जो हिंदू धर्म की समावेशी प्रकृति को दर्शाती है।
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